यादों के झरोखों से " लोग क्या कहेंगे "
दोस्तों! हम सबके जीवन में ऐसा पल अनेकों बार ऐसा आता ही है जब हमें एक बार भगवान से यह कहते हैं कि काश! हम बच्चे बन जाते हैं और उन सभी चीजों का लुफ्त लेते हैं जो हम बचपन में लिया करते थे क्योंकि बड़े होने पर मैंने देखा है कि मन में यही डर समाया रहता है कि लोग क्या कहेंगे? दो-चार लोगों के कहने को सोच कर ही हम अपनी खुशियों से मुंह मोड़ लेते हैं, वैसे खुशियां जो हमें खुश कर सकती थी, हमें आनंद दे सकती थी लेकिन हमने यह सोचकर नहीं लिया की चार लोग क्या कहेंगे?
दोस्तों! बच्चे निश्चल भाव रखते हुए जो भी काम करते हैं दिल से करते हैं। एक उदाहरण के द्वारा इसे समझने का प्रयास करते हैं। मान लों घर में कोई गाना बजा दे तो एक बच्चा उस गाने को सुनकर डांस करने लगता है। लोग यानी कि उस घर के हम जैसे बड़े भी उसको देख कर हंसते हैं, खुश होते हैं लेकिन वैसी ही स्थिति हो और उस बच्चे के स्थान पर कोई बड़ा वैसा करने लगे तो घर के लोग ही उसे हंसने की वजह से ऐसी नजरों से देखेंगे जैसे उसने कोई गुनाह कर दिया। बहुत लोग तो यही कहेंगे कि पागल हो गए हो क्या जो गाना सुनते ही डांस करने लगे?
दोस्तों ! स्थिति वही थी लेकिन बच्चे और बड़े में जो मैंने कहा वह अंतर हो गया और ऐसा हमारी सोच को प्रदर्शित करता है। खुशियां तो दोनों जगह पर बटोरी जा सकती थी। बच्चे ने डांस किया तब हम खुश हो रहे थे जब बड़े डांस कर रहे थे तब भी हमें खुश होना चाहिए था लेकिन हम नहीं हुए। हम उसे आश्चर्य से देखने लगे और कहने लगे कि पागल है क्या जो डांस कर रहा है? ऐसी स्थिति हम सबके साथ आती ही है इसीलिए तो हम ईश्वर से यह कहते हैं कि काश! हम बच्चे बन जाते हैं, इस जिम्मेदारी से मुक्त हमारा जीवन होता। बच्चे अपने लिए जीते हैं जब उन्हें खुश होने का दिल करता है खुश होते हैं जब उन्हें रोने का मन करता है रो लेते हैं लेकिन क्या हम बड़े लोगों के साथ ऐसा होता है? बिल्कुल भी नहीं। कभी-कभी तो हमारे साथ ऐसा होता है कि हमें हंसने का मन भी हो तो हम यह सोचकर नहीं हंसते कि जो लोग हमें हंसते देखेंगे वह हमें पागल ही समझेंगे और हम रो भी नहीं सकते क्योंकि वही स्थिति होंगी। लोग तो यही समझेंगे कि बेवजह रो रही है। हम बड़े बहुत चीज नहीं कर सकते जो बच्चे कर सकते हैं।
दोस्तों! यह सब बातें मैंने इसलिए कहीं क्योंकि मेरे साथ भी बहुत बार ऐसा होता है कि मन मेरा हंसने - बोलने ही डांस करने का करता है लेकिन मैं कर नहीं पाती और ऐसा २०२२ के उस दिन हुआ था जब कोई भी कारण नहीं था लेकिन फिर भी ना जाने क्यों मेरा मन वों सब करने का कर रहा था जिसे हम ही पागलपन की श्रेणी में लाकर रखते हैं और इसका मजाक भी उडा़ते है। ये बात इसलिए यादों में घर कर गई क्योंकि मैंने इसे यह सोचकर नही किया था कि लोग क्या कहेंगे।
दोस्तों! यादों के झरोखों से ऐसी ही यादों को लेकर फिर से आऊंगी तब तक के लिए आप सब अपना ख्याल रखना और खुश रहना।
गुॅंजन कमल 💗💞💓
Pranali shrivastava
10-Dec-2022 09:18 PM
बहुत खूब
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Prbhat kumar
07-Dec-2022 11:16 AM
शानदार प्रस्तुति 👌
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Varsha_Upadhyay
06-Dec-2022 07:59 PM
शानदार
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